"होली में खुशियों की आती बहार फागुन में रंगों की होती बौछार गोरा न काला मिटे भेदभाव टोली में बैठे सभी एके ठाँव" - ज्योति कुमारी
"किस्मत भी अजीब खेल,खेल जाती है, जो चाहो वह नहीं मिल पाता और चाहत छोड़ देने पर सामने खड़ा हो जाता है।"
"किस्मत भी अजीब खेल,खेल जाती है, जो चाहो वह नहीं मिल पाता और चाहत छोड़ देने पर सामने खड़ा हो जाता है।"