समाज, राजनीति,सभ्यता, संस्कृति में हर कहीं एक पर्त बिछा दी गयी है और उसका नाम बाजारवाद है !
इन्सानों ने प्रकृति पर अपना अधिपत्य स्थापित करकें पूरी पृथ्वी को ख़तरनाक बना दिया है।
ज़िन्दगी हमेशा चौकाने के लिए तैयार होती है और आप अपने अनुभवों की पोटली लिए ठगे रह जाते हैं ।
आज की दुनिया में न आदर्श दोस्ती संभव है ना प्यार। बस कुछ लेन देन से हर रिश्ते ज़िंदा हैं। आपके पास ख़ुद के लिए वक़्त नहीं, दोस्तों के लिए कहाँ से लाओगे? इस दोस्ती के दिन क्या हम इन्शान होंने के नाते ही सही दूसरों से प्रेम करने का वादा कर सकते हैं।
अब तुम्हारा होना ही मेरे जीने की वजह है