कुछ खिड़कियाँ सिर्फ खिड़कियाँ नही दरवाजें होती हैं,जो लेकर जाती है हमें उस पार,जहाँ दुनिया का हर दरवाजा बंद हो जाता हैं
पीढ़िया चिताओं पे करवट ले रही हैं
अनुभव खाक के हवाले हो रहे
कैसा ये दौर हैं
परेशां सा शहर हैं
गैरो को नपा तुला अपनो को बेहिसाब
कभी दर्द भी ऐसे ही बाँट लो तो कुछ बात हैं
उंचाइयाँ अक्सर ढह जाया करती हैं
जमीं पर रेत सी बेहतर हूँ मैं