रुख हवाओं का मोड़ने की ज़िद क्यों करें
हो के हवाओं पे सवार अब अपना सफ़र है
तूफ़ान के वेग को पालों में भर के बढ़ चलो
सट के नहीं बल्कि डट के रहने में असर है
सुर्ख उम्मिदों को पनपने दो जरा
इन्हीं की परवरश में ग़ुल-ऐ- दिल लाल होंगे ॥
बस इस दिल को मनाने में जंग जू हुए जाते हैं
व२ना दुनिया तो इक तस्वीर से बहल जाती है
जानो तो अपने हैं गुलशन के बूटे,
बादलों के झुंड और बरसती हुई बूंदें ;
धरती से आसमाँ तक पसरी हुई है,
समेट लो कि खुशियाँ ,हाथों से ना छूटे ॥