Dakshal Kumar Vyas
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आज नया अध्याय लिखूं पर समाज, बुराइयां, अन्याय, देश , छोड़ क्या लिखूं प्रेम, श्रृंगार मेरे बस का नहीं मैं सभी को साथ ले चलने का गीत लिखूं। दक्षल कुमार व्यास

मन समुद्र हैं तन किनारा आते सभी बस किनारे तक दक्षल कुमार व्यास

क़दम पीछे कभी हटाएं नहीं पराजय हुई हैं विजय के लिऐ निराश नहीं हताश नहीं जीत की चाह है इस जीवन संग्राम में। दक्षल कुमार व्यास


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