सर्द हवाओं में जलती नफरतों की आग की तासीर ठंडी है , तभी तो कांप रहा सूरज , कम हो रही धरती की गर्मी है ।
प्रेम से सिक्त स्त्रियां , जलेबी सी मीठी होती हैं , अन्याय से क्रोधित स्त्रियां , सांप सी जहरीली हो जाती है।
कोहरा कितना भी घना हो , तू, थम - थम के चलता रह , आंधियों में भी राह दिखेगी , बस , भीतर की लौ जलाए रख ।