Asha Gandhi
Literary Colonel
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हिचकियाँ फिर से ,झूठी ही सही पर तसल्ली दिला गयी कोई याद कर रहा है , दिल मे एक मधुर आस जगा गयी

मुलाकात ही सिर्फ इक ज़रिया नहीं , उनके दिल मे उतरने का , हम तो चाँद को ही जरिया बना लेते हैं उनकी छत से दिल में उतरने का ¶

वादा किया था खुद से ,ता उम्र ना कभी अश्क बहाऊंगा , मालूम ना था ,उसके दो बोल से ही ,दरिया बन जाऊँगा।

धुप का तो साहिब ,बस इक बहाना था चश्मे की आड़ मे ,बहुत कुछ छिपाना था।

सत्युग इतिहास नहीं ,वह तो भविष्य है , यदि मन साफ़ है ,और विचार उज्वल हैं।


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