लक्ष्य तेरा अटल तो आसमाँ तेरा अभिलाषी हैं ।
हौसलों की उड़ान भर, सफलता तेरी दासी हैं।।
यें बारिश की बूँदे भी ना जाने क्या ख़ता कर रहीं हैं
महबूब की यादों को ताज़ा कर जाने क्या अता कर रही हैं
मैं अपनी औक़ात से ज़्यादा नहीं करता
निभा ना सकूँ वो कभी वादा नहीं करता
तमन्ना तों हैं बुलंदियो पर जाने की पर,
क्षत्रिय हूँ साहब,
किसी अपने को गिराकर मंज़िल पाने का इरादा नहीं रखता।