झूठो के संग हर दिन एक नया काफिला देखा है
सच्चो को तो जब भी देखा तन्हा देखा है
दिन ने जब से तुमको देखा
रातें भटकी भटकी रहती हैं
मेरी मीठी नींदें लौटा दो
आँखें कड़वी कड़वी रहती हैं
बिस्तर छोड़ कर मुँह भी धोना पड़ता है
फ़कत सूरज के उठ जाने से दिन नहीं निकला करते
गढो किरदार कुछ इस तरह से
जो आने वाली नस्ले कुछ सीख ले तुमसे