उलझे हुए धाँगों की सीधी डोर हूँ।
Share with friendsमैं काँच का गिलास नहीं, लोहे की तलवार हूँ, चाहे करो कोशिश गिराने की कितनी ही दफा... टूटूँगी नहीं.....!! ©चारु
बंधन ग़र प्रेम और सम्मान का हो तो भाता है। यदि बंधन सिर्फ हक और अधिकार का हो तो उत्पीड़ित करता है ।।
यादें कुछ यादें अगरबत्ती की सुगंध भरे कमरे सी होती है, तो कुछ काँटों की झाड़ी सी। दोनों में से कौन सी को महत्व देना है, यह हमें तय करना होता है।।
गुरु क्या है, यह शब्दों में बता पाऊँ , इतनी ताकत मेरी कलम में नहीं। क्योंकि कलम पकड़ना उन्होंने सिखाया, शब्दों को पिरोना भी उन्होंने ही समझाया । उनके दिखाए पथ पर चल पाऊँ, बस यही कोशिश मैं प्रतिदिन करती हूँ, उनके आगे अपना शीश नमन करती हूँ।। "Teacher's Day" #thankyou Teacher