I'm Akash and I love to read StoryMirror contents.
Share with friendsसींचा जिस बगीचे को उसने अपने लहू से, हमारी पहेचान उसी बगीचे से आती है। एक अरसा हुआ उसे मुरझाए हुए, मगर उसकी महक आज भी हमसे आती है।।
गुम था हर शख्स ख्वाहिशों को पर लगाने में आज मशरूफ है अपना किरदार बचाने में बे दाम हैं वो ख्वाहिशें आज वक़्त की दुकानों में कोई नहीं है इनका खरीदार बाजारों में