*लेखन में निरंतर सक्रिय, अब तक अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लगभग दो हजार आठ(2008) रचनाएं प्रकाशित. *चार पुस्तकें प्रकाशित. *प्रकाशित पुस्तकें- 1.आंचलिक उपन्यासों के परिप्रेक्ष्य में फणीश्वरनाथ रेणु का विशेष अध्ययन.( शोध ग्रंथ) 2.काव्यांजलि-कविता संग्रह 3.सारे जमीं पर-कविता संग्रह 4.महकता... Read more
Share with friends"जाल" चहकती चिरैया!रहो सावधान- मुझे तो बुरा सा खयाल आ रहा है, अदाओं पे होकर फिदा वो तेरी- लेकर शिकारी भी जाल आ रहा है. डॉ. अंजु लता सिंह प्रियम
अनंत" इस अनंत ब्रह्मांड में ,अंतहीन खुशियां और गम- मिलतीं हर इंसान को, भू पर ज्यादा या कम, नेह के प्यारे से बंधन में,जीव-जंतु सब बंधे हुए हैं- है उजास विश्वास की,भले ही फैला होवे तम. रचयिता- डॉ.अंजु लता सिंह प्रियम,नई दिल्ली
# भिड़ो न बंधु तुम हर बार,दुश्मन से मत ठानो रार मस्त रहो परहित में हरदम, निहत्थे पर करो न वार बिना बात ही मत उलझो,रक्खो बस उत्तम व्यवहार कहना न पड़ जाए कभी भी,"आ बैल मुझे मार"