भेदभाव क्या जाने बचपन
मासूमियत से था दिलों का संगम
मैं हर बार खुदा की इबादत क्यों करू
जब नेकी ही इबादत है तो
-Chand
रोज़ी तो मेरी चल रही है हंसी खुशी के साथ
इतनी तो खुदा ने नेम़त बख्शी है
रोज़ी तो मेरी चल रही है हंसी खुशी के साथ
इतनी तो खुदा ने नेम़त बख्शी है