धर मंजिल अपनी
कर साबित खुद को,
क्यों आस लगाये बेठे हो
आती हैं कई काँटों की राहें
पर बना उत्साह की तीखी एक धार
और काट दे उन काँटों की राहों को
फिर चल ,वापस चल
कर दिखा , और
धर मंजिल अपनी
उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल मिल नहीं जाती।
करत करत अभ्यास जड़मत हो सुजान रसरी आवत जावत सिल पर परत निशान।