dr.Susheela Pal
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तुम्हारी नज़रों मे दुनिया को देखूं या दुनियां को तुम्हारी नज़रों से मायने कैसे बदल जाएंगे जिन्दगी के भुलावा दोनों सूरत में खुद को ही देना है

कितनी भी चालाकी कर लो परिणाम तो नियत पर ही आंका जाएगा फैसला हो ही न पाया बहुत बातों के बाद दरक गयी दोस्ती  कई मुलाक़ातों के बाद

तुम्हारे यादों की गवाह हिचकियाँ भी नहीं है कैसे कह दूं कि तुम याद करते हो!!

क्यूं रिश्तों मे सच्चाई ढूंढने निकले बहुतों की कलई उतरते देख रहे। क्यों कर मन को ढाढस बंधाऊं नज़रों मे कुटिलता सजते देख रहे ।

इनकी चाल है बस ऐश के लिए मतलब दिख रहा बस कैश के लिए चकरा रहें हैं इस देश के दीवाने कोई नहीं लड़ रहा मेरे देश के लिए 

नज़ाकत से छुओ या मसलकर गुलाब की खुशबू आपके हाथों को महका ही जाती हैं

दूर होकर भी तुम पास हो तकदीर से ज्यादा, तुम विश्वास हो तुम न रूठों साथी कभी न बुझने वाली तुम प्यास हो।

फागुन की फुहार उड़ी  होली की बहार चली रंगों की बारिश हुई भीगे न्यारे मीत हमजोली

नदी किनारे मेरा गाँव, सुंदर रमणीय ह्रदयांगम छांव शीतलता नैनो मे पसरी और कहीं न मेरा ठांव


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