तुम्हारी नज़रों मे दुनिया को देखूं या दुनियां को तुम्हारी नज़रों से मायने कैसे बदल जाएंगे जिन्दगी के भुलावा दोनों सूरत में खुद को ही देना है
कितनी भी चालाकी कर लो परिणाम तो नियत पर ही आंका जाएगा फैसला हो ही न पाया बहुत बातों के बाद दरक गयी दोस्ती कई मुलाक़ातों के बाद
क्यूं रिश्तों मे सच्चाई ढूंढने निकले बहुतों की कलई उतरते देख रहे। क्यों कर मन को ढाढस बंधाऊं नज़रों मे कुटिलता सजते देख रहे ।
इनकी चाल है बस ऐश के लिए मतलब दिख रहा बस कैश के लिए चकरा रहें हैं इस देश के दीवाने कोई नहीं लड़ रहा मेरे देश के लिए
दूर होकर भी तुम पास हो तकदीर से ज्यादा, तुम विश्वास हो तुम न रूठों साथी कभी न बुझने वाली तुम प्यास हो।