I'm Pallavi and I love to read StoryMirror contents.
Share with friendsचेहरे पर चेहरा चढ़ाए बैठे थे लोग । अपने में परायापन दबाए बैठे थे लोग। चेहरा खुला जो मुस्कुराए बैठे हैं लोग । कत्ल कर अब सजा सुनाए बैठे हैं लोग ।
जीवन में राहें, आसान नहीं होतीं। शिलाखंड भी मिलते, तीव्र धाराएँ भी बहतीं। राही परचम फहराते, जब चाल अडिग होती। एक पथ,कर्म रत रहके, सफ़लता पग में बसती।
बीमार शहरों की रौनक़ बिखर गयी है आज घरों में दरों दीवारों की साँसें कुछ तरोताजा सी लगती हैं । ©®पल्लवी गोयल