प्रियम श्रीवास्तव
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ये जो हवायें बहती है मंद-मंद, ठीक वैसे हीं, जैसे तू- मुस्कुराती है मंद-मंद! ये जो मौसम है,अंगड़ाईयाँ लेती है-फिर, सावन की रिमझिम बरसात, करती है मंद-मंद! इस रिमझिम फ़ुहार कि ये जो बूंदे है- तुझे निहारती है मंद-मंद- फिर तू अपने प्यार से, इस तपन को, ठंढक पहुँचाती है मंद-मंद! - प्रियम श्रीवास्तव

अल्फाजों में अब खो जाना हीं अच्छा है- खुद-ब-दिन अल्फाजों में उलझ जाना हीं अच्छा है- हम ख़ुद के अन्दर की हसरतें बताए तो बताए किसे- ख़ुद के सवाल और ख़ुद के हीं ज़बाब में उलझ जाना हीं अच्छा है! ----प्रियम श्रीवास्तव

मुझे मालूम नहीं, कैसे तारीफ़ करूँ तेरी- चलो तेरे तारीफ़ में आज क़िताब लिखते है- मेरी नज़रों में तुम जैसा तो कोई भी नहीं- क़िताब में तेरी खूबसूरती की राज लिखते है! -------प्रियम श्रीवास्तव

उसकी खामोशियों की राज़ हम जान न सके, जानकर भी आजतक- वो भी एक ज़माना था जब हम उसके दिलो पे राज किया करते थे!! राज़: रहस्य राज: शासन ----प्रियम श्रीवास्तव

तेरे हर वादे दर्ज होती है, मेरी हर एक कविता में, शब्दों के रूप पे- तुम चाह कर भी इस अपनापन में बस दर्ज़ न कर सके! दर्ज: लिखित दर्ज़: दरार ----प्रियम श्रीवास्तव


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