न बोझ था जिम्मेदारियों का ,
न डर था रिश्ते नातों का ,
वह मेरा बचपन था ।
वह बचपन ही था ,जिसमे हमे न कल की चिंता थी ,
यहाँ हर आदमी को आने वाले कल की चिंता है ।
न मोबाइल थे , न घड़ियाँ थी ,
फिर भी , सही समय पर सब दोस्त मिलते थे ,
वह मेरा बचपन था ।
न लेना था , न देना था
अपनी मस्ती में मस्त रहना था ,
वह मेरा बचपन था ।
अपनी तो बढ़ चढ़ कर बाते करते है लोग ,
और दूसरों की घिस पिट के सुनाते है लोग ।
हो स्वार्थ तो हर हद तक चले जाते है लोग ।
निःस्वार्थ तो गिरी हुई वस्तु भी नही उठाते है लोग ।।
निःस्वार्थ ,निडर ओर निःसंदेह था ।
न चिंता थी ,न मतलब था
वो मेरा बचपन था ।
jeevan singh
स्वार्थ सिद्धि में लगे हुए सब , अपने मे ही मस्त है ।
दुसरो के जले पर नमक छिड़कते है लोग , ओर अपने जले पर मक्खन लगाते है लोग ।