दोस्त दोस्ती निभा न सका,
दुश्मन दुश्मनी निभाता रहा,
अपना अपना न रह सका,
पराया पराया ही होता रहा।
दोस्त बेशक मुश्किलों से बनते हैं,
मग़र आज कल बनते ही कहाँ हैं?
मंज़िलें हमारी बेशक एक नहीं हैं,
मग़र सफर का जुड़ाव यादें बना गया।
सफर को बीच रास्ते में छोड़ देना,
मंज़िल से दूरियाँ बनाने जैसा ही है।
सफर ही ज़िन्दगी को जीने का तरीका है,
मंज़िल मौत की ओर बस बढ़ते कदम है।
सफर में हमसफ़र की तलाश ताउम्र जारी है,
मंज़िल मिलने की उम्मीद है तो मिल ही जायेगी।
इन्तज़ार का मज़ा ही कुछ अलग है,
तड़प ये मिलने की भी अब अलग है,
सफर अब यों रोमांचक हो चला कि,
मंज़िल की बेड़ियों की बात ही कुछ अलग है।
सफर में कहीं अगर हमसफ़र मिल जाए,
अनजाने रास्ते पहचाने से लगने लगते हैं।
ज़िन्दगी का सफर बेशक खार सा ही था,
मंज़िल की अास ने इसे गुलज़ार बना दिया।