Usha Raghav
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Social worker Having my own NGO, Poetry writer , like travelling, music lover, rain lover, motivational speaker

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इश्तियाक़ ए दिल ये कि बनते शरीक़ ए हयात उनकी ख़ुदाया मोहब्बत में अगर वो संजीदा होते

इश्क़ की दास्तान अक्सर दर्द बनकर अश्कों की सियाही से कोरे कागज पर उभर आती है

करती हूँ कबसे तेरा इंतज़ार करके मैं पूरे सोलह श्रृंगार लेकर के आओ सजना बारात ले जाओ मुझे सात फेरों के बाद

दे जाती हैं तुम्हारी यादें कुछ ऐसे ज़ख्म जो कभी नहीं भरते जिंदगी भर हरे रहते हैं

मिज़ाज़ मौसम का हुआ आशिक़ाना सजाया है चोटी में बेला का गजरा माथे पे बिंदिया है कानों में झुमका नज़रों से नज़रों की सुनो अब जरा

प्यार में तेरे सुध बुध खोकर, हो गयी मैं बेफिक्र बड़ी अब तू चाहे माने या न माने, मैं तो पिया तेरे गले पड़ी

जुल्फों की ओट से वो हमें रह रह कर देख लेते हैं पढ़ने के बहाने वो रोज़ छत पर आ जाया करते हैं

बन के घटा जुल्फें तेरी, कुछ इस क़दर लहराई हैं बादल टूट के बरसेंगे, मौसम पे ख़ुमारी छाई है

जब भी होते हैं रूबरू तो मुदारात करे हैं वो फ़िरते ही नज़रें हमको न फिर याद करे हैं वो


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