तलाशते हुये स्वयं का अस्तित्व पुरी जिन्दगी निकल गई मेंरी अब। मैं को छोड़ने के बाद ही मील पाई हूं खुद से मैं अब।।
मेरी हर लाइन पर तुम वाह-वाह करते हो। मेरे कलम की आवाज को गुमराह करते हो।। मर जाती है कलम खुद की झुठी तारिफ से। बख्श दो इसे अब , तुम बेमतलब की तारिफ से।