Anand Barotia
Literary Lieutenant
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Script Writer ✍️|Biker|Poet| थोड़ी ग़ालिब की खाली बोतल से ली, कुछ गुलज़ार के ग्लास से डाली,प्यास तो खुद की थी ही, हमने अपनी ज़िंदगी शराब बना डाली

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बिल्कुल बेपरवाह.... होकर चला करती थी तुम मेरे यकीन पर... अब तुम्हारे चलने का अंदाज़ कुछ संभल गया है , बताओ न क्या हम दोनों के बीच कुछ बदल गया है

उसे खुद के सामने खुद के सर पर हाथ रख कर खुद से , खुद की झूठी कसम खाई थी और फिर वो मर गया , सच्ची तेरी कसम - ये बात बचपन में मेरी नानी ने मुझे बताई थी

बिल्कुल बेपरवाह.... होकर चला करती थी तुम मेरे यकीन पर... अब तुम्हारे चलने का अंदाज़ कुछ संभल गया है , बताओ न क्या हम दोनों के बीच कुछ बदल गया है

उसे खुद के सामने खुद के सर पर हाथ रख कर खुद से , खुद की झूठी कसम खाई थी और फिर वो मर गया , सच्ची तेरी कसम - ये बात बचपन में मेरी नानी ने मुझे बताई थी

जो जानने के काबिल था उसे छोड़ कर जो चाहा , वो जाना और अब हम नहीं जानते की आखिर क्या किया जाए

कुछ लोगो को ख़ुदा खुद जीतने नहीं देता कभी कभी के वो जानता है , की ग़र ये जीते तो क़यामत आ जाएगी - अभी

कहो की तुम हमे अपना कहोगी हम रहें न रहें साथ अपने , तुम रहोगी

शाम गिनकर हर गलती बताती है सुबह होती है....हर नसीहत भूल जाती है

हसीं रात बीत गई , उस रात जो हुई थी बात वो बात...बीत गई, अपनी नज़रों को हटाओ उनसे वो देखो सुबह नयी


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