Prafulla Kumar Tripathi
Literary General
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आकाशवाणी की सेवा से रिटायर्ड।लेखन में रुचि।अनेक पुस्तकें प्रकाशित |अनेक संस्थाओं से पुरस्कृत।

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भई , हमेशा की तरह एक और साल बीत रहा है आपका जीवन नहीं!

अजीब ज़िंदगी है .. पहले लुटाती है .. फिर , लुटती है !

उठती गिरती सांसें जैसे , ममता मां की ठीक ही वैसे ।

हाथ खोल कुदरत ने लुटाई हर दौलत , तुमने मिल कुदरत को ही क्यों लूट लिया ?

झुक के उठना जीत है , पर उठ के झुकना हार है।

जो चले गये कुछ देके गये , जो आते अब , सब ले जाते ।

झुक के उठना जीत है पर उठ के झुकना...हार !

वह और दौर था जब हम सिर्फ दुपट्टा खींच कर अपनी आशिकी जताया करते थे ! आज का दौर है जब सीधे होठों पर चुम्बन जड़कर अपनी आशिकी का इजहार कर दिया जाता है !..कोई शक़ ?

जानेमन ! मैं आज भले ही पचपन का हूँ , मेरी उम्र बचपन और योैवन की है | हाँ हाँ ! बचपन है तो मैं हूँ , यौवन है तो तुम हो !


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