भई , हमेशा की तरह एक और साल बीत रहा है आपका जीवन नहीं!
अजीब ज़िंदगी है ..
पहले लुटाती है ..
फिर ,
लुटती है !
उठती गिरती सांसें जैसे ,
ममता मां की ठीक ही वैसे ।
हाथ खोल कुदरत ने लुटाई हर दौलत ,
तुमने मिल कुदरत को ही क्यों लूट लिया ?
झुक के उठना जीत है ,
पर उठ के झुकना हार है।
जो चले गये कुछ देके गये ,
जो आते अब , सब ले जाते ।
झुक के उठना जीत है पर
उठ के झुकना...हार !
वह और दौर था जब हम सिर्फ दुपट्टा खींच कर अपनी आशिकी जताया करते थे ! आज का दौर है जब सीधे होठों पर चुम्बन जड़कर अपनी आशिकी का इजहार कर दिया जाता है !..कोई शक़ ?
जानेमन ! मैं आज भले ही पचपन का हूँ , मेरी उम्र बचपन और योैवन की है |
हाँ हाँ ! बचपन है तो मैं हूँ , यौवन है तो तुम हो !