मैंने कागज के पन्नों पर, जब 'दोस्ती' लिखा।
हर पन्ने पर एक-एक नाम जुड़ता ही गया।।
जब भी अजान लगती है,
सिर सजदा होकर झुकता है।
नमाज़ को पढ़के नमाज़ी,
खुदा को याद करता है।।
बिन नारी के पुरुष का ,
क्या आधार है।
घर की नारी लक्ष्मी है,,
वही तो सूत्रधार है।।