सतीश कुमार मीणा
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मैंने कागज के पन्नों पर, जब 'दोस्ती' लिखा। हर पन्ने पर एक-एक नाम जुड़ता ही गया।।

जब भी अजान लगती है, सिर सजदा होकर झुकता है। नमाज़ को पढ़के नमाज़ी, खुदा को याद करता है।।

बिन नारी के पुरुष का , क्या आधार है।  घर की नारी लक्ष्मी है,, वही तो सूत्रधार है।। 


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