हर घर ऐसा भी दर्पण हो मानुष देख सके खुद के मन को।। मन को भी पढ़ना सिखला दे ऐसा भी इक विद्यालय हो।। . . . नवनीत गोस्वामी 8/1/2024
मात - पिता की डाँट डपट या गारी बकते दोस्त और यार जो कोई ये प्यार पहचान लिए खत्म उसी क्षण छल के व्यापार ! मन विभोर, जब पाए ऐसा सच्चा प्यार !! नवनीत गोस्वामी / 6 जनवरी 2024
जीवन जीने के दो रास्ते खुदगर्जी में या दूजे के वास्ते । सुकून मिलेगा दोनो में हीं मगर खुलेंगे फिर, दो और रास्ते
भाव भाव में फ़र्क़ है क्या तू समझ ये पायेगा ? गर भाव रहा तेरा सच्चा अनमोल कहा तू जायेगा। जो भाव का तूने भाव कहा तो सौदागर तू कहलायेगा। भावों के दरिया में बह कर मजनूं और रांझे तर गए रुखसत होकर भी इस दुनिया में जज़्बात (भाव)-ए-मोहब्बत भर के गए ! . . . नवनीत