Anup Kumar
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संत व संतत्व की संगति ,सानिध्य और समागम से संस्कार और संस्कृति की सौम्य ,शांत ,सरस सलिलयुक्त , स्नेहिल सरिता सदा- सर्वदा सहज ही सतत संचरित होती है।

जो स्वयं गलत होता है, वह कभी गलत को गलत नहीं कहता गलत को गलत कहने का साहस सही ही कर पाता है।

एक आस्तिक अपनी श्रद्धामूलक दृष्टि से पत्थर में भी भगवान देख लेता है, जबकि नास्तिक क्षुद्र दृष्टि के कारण भगवान को भी पत्थर समान ही देखता है।

जब मुझमें मैं था तब मैं, मैं नहीं था अब सिर्फ मैं ही हूँ मैं |

दृष्टि बदलती है तो मायने भी स्वतः ही बदल जाते हैं |


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