याद है तुमको तुमने कहा था तुम्हें कभी भूलेंगे नही,
ख़ैर छोड़ो जब मुझे ही भूल गए तो बातों का क्या।
तुम चले गए तो खुशियाँ चली गई सारी।
कटती ही नही तन्हा शाम हमसे ये भारी।
फ़हिमा फ़ारूक़ी
रूठने वाले मान जा अब तू।
रूठ के दिल को ना जला अब तू।
फ़हिमा फ़ारूक़ी
दिन भर का महसूल तेरी इक मुस्कान है।
जिससे थके जिस्म में आ जाती जान है।
फ़हिमा
जितना सुलझाऊँ उतना उलझती ज़िन्दगी।
ख़्वाहिशों की आग में झुलसती ज़िन्दगी।
फ़हिमा फ़ारूक़ी
धीरे धीरे बातों को फ़ुरसत हो रही है।
तेरे बग़ैर जीने की आदत हो रही है।
फ़हिमा
होगी कभी तो फ़ुरसत हमें भी,
हम भी कभी ज़िंदगी जिएंगे।
फ़हिमा
सूखे किनारे की गहराई में नमी होती है।
एक चीख़ ख़ामोशी में भी दबी होती है।
फ़हिमा
जब ज़िक्र मोहब्बत का होता है तुम याद आते हो.
पता है कुछ आदते कभी नही बदलतीं.
फ़हिमा