दमन से ही निखरते रहे हैं
इंकलाब के अहं किरदार
पूरी दुनिया का इतिहास
इसका साक्षी रहा बारंबार
दमन से ही निखरते रहे हैं
इंकलाब के अहं किरदार
पूरी दुनिया का इतिहास
इसका साक्षी रहा बारंबार
ईमानदारी तो किताबों
के लिए ही बेहतरीन
जो तय लक्ष्य साध ले
वो वास्तव में प्रवीण
कंपते पांव कब छोड़े
काल कपाल पे चिह्न
वे तो सदा खोजते हैं
सुगम राह निशि दिन
सत्य को जरूरत है
कहां कब प्रपंच की
साहसी को डर कहां
बैरियों के रंगमंच की
मानुष ही अब पत्थर हो गया
कलिकाल का असर पुरजोर
ऐसे में फिर इंसान कैसे करे
नीर क्षीर का फर्क चहुंओर
पदयात्राएं बदल देती
हैं जन विमर्श के बिंदु
बशर्ते नेता की ज़ुबां पे
चमके जनहित का इंदु
कौन भूला है, और
कौन याद करता है
मस्त मौला कहां कब
ये हिसाब करता है
मिलना मिलाना जरूरी
ताकि यादें मचलती रहें
जिंदगी चलने का नाम
ये सदा भी खनकती रहे