Ashish Kumar
Literary Captain
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उँगली पकड़ के चला था तू जिसकी आज उसको भी तेरा सहारा चाहिये|

खुदा तेरी महफ़िल में , बदलती अपनी हस्ती देखी, मैं, मैं न रहा डूबती अपनी कस्ती देखी।

लहरों पर चलना सीख ले "आनंद" हक़ीक़त -ए -दुनिया देखने का वक़्त आ गया है|

तेरी ख्वाहिशों में हमदम मेरा ज़िक्र ही नहीं है|


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