बाबा का ढ़ाबा
पल में फ़लक तक पल में जमीं पे आ गए।
कुछ ख़ुद सीखा कुछ दुनिया को सीखा गए।
ये कर्मों का ही फल है, वक़्त ने करवट बदली
देखो फ़िर से अपनी औकात पे आ गए है।।
©®रशीद अकेला
इश्क़ तेरी रूह से है वरना
जहां में हसीं चेहरे और भी हैं।
©® रशीद अकेला
किसी ने पूछा हमसे इतना दर्द कैसे भर लेते हो शेर में
हमने कहा जो सहा है बस वही कहा है।
©® रशीद अकेला
तेरी गलियों से गुजरते-गुजरते
देखना एक दिन गुज़र ही जायेंगे।।
©®!रशीद अकेला!
ज़िन्दगी के सफ़र में एक हमसफ़र की तलाश हर किसी को होती है।
अकेले ज़िन्दगी पूरी कहाँ होती होतीे है।।
©®रशीद अकेला
इंतजार में राहों में पलकें
बिछाता है।
अपना हो कोई तो अपनापन
झलक ही जाता है। और
नहीं कोई शक इस रिश्ते की
पवित्रता पर
तभी तो गुरुवर भी आज
मित्रवर बन जाता है।
©® रशीद अकेला
अकेला रहना ही जहां में कहाँ जरुरी है।
जीवन के सफ़र में एक हमसफ़र भी जरुरी है।।
माना कि मेरे बिना तु एक पल भी अधूरी नहीं,
पर क्या जीवन के सफ़र में मेरा साथ जरुरी नहीं।।
किसी को अच्छा और बुरा बनाना तो इंसानों के हाथ में है।
लोग तो पत्थरों को भी ख़ुदा बना देते हैं।।
!!रशीद अकेला!!