Writer and social worker
Share with friendsबाबा का ढ़ाबा पल में फ़लक तक पल में जमीं पे आ गए। कुछ ख़ुद सीखा कुछ दुनिया को सीखा गए। ये कर्मों का ही फल है, वक़्त ने करवट बदली देखो फ़िर से अपनी औकात पे आ गए है।। ©®रशीद अकेला
ज़िन्दगी के सफ़र में एक हमसफ़र की तलाश हर किसी को होती है। अकेले ज़िन्दगी पूरी कहाँ होती होतीे है।। ©®रशीद अकेला
इंतजार में राहों में पलकें बिछाता है। अपना हो कोई तो अपनापन झलक ही जाता है। और नहीं कोई शक इस रिश्ते की पवित्रता पर तभी तो गुरुवर भी आज मित्रवर बन जाता है। ©® रशीद अकेला