क्या क्या न हमने भी सहा पूछो ही मत
दिल को मिली कितनी सज़ा पूछो ही मत ये इश्क क्या होता न था हमको पता कर बैठे हम भी ये ख़ता पूछो ही मत
काजल के घेरे में छुपा ख़्वाबों को हसरत से
जागी हुई रातों में कब सोती हैं ये आँखें
हज़ारों मोड़ देखे हैं वफ़ाओं के मुहब्बत के
नया फ़िर ज़ख्म खाते हैं पुराना भूल जाते हैं
काम जिसका दिलों को ही तोड़ना
बेवफ़ा से वफ़ा कोई क्या करे
हम भी यूँ गुनहगार न होते
गर तेरे तलबगार न होते
दिल भी न सुलगता मेरा तन्हा
आँखों में भी अंगार न होते
ज़िंदगी से न कोई गिला ,मिलना था जो वो हमको मिला
अपने हिस्से का था जो यहाँ , वो मुकद्दर में सबको मिला
हसरतें दिल में कितनी लिये फ़िर रहे,
ज़िंदगी ज़िन्दगी भर सताती रही
चलो हम आज पहले तो जरूरी काम करते हैं
वसीयत में ये अपना दिल तेरे ही नाम करते हैं
आज उसने गुलाब भेजा है खूबसूरत जवाब भेजा है