manisha suman
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मै मनीषा सहाय सुमन, पिता कवि सुरेन्द्र नाथ सक्सेना,बचपन से ही पिता के साहित्य साधना से प्रेरित रही और उनका अनुसरण कर कुछ सार व भावयुक्त लिखने का प्रयत्न करती हूं।

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सारनाथ स्तूपवाले सिंहचिह्नो का दायित्व हुँ भारत की अर्थ व्यवस्था को देता स्थायित्व हुँ मैं संपत्तिरूपी सर्वेश्वरी संपदा परिचायक हुँ, पाने को करते जतन,पाकर भी न संतृप्त हो

मैं पैसा हुँ, जैसे किसी दुल्हन की बिंदिया हुँ, मानो न मानो आज मैं ही दुनिया हुँ।

ऐ दोस्त तेरे होने से, दुनिया का हर मंजर सुनहरा है, जिंदगी,कामयाबी पूरा शहर मेरा है, डरता था अक्सर दौरें जमाने से, तेरे आने से हर मौसम सुनहरा है। मनीषा

हादसों के लेखक नही, कलम के फनकार है, ज्जबातों का कैनवास नही, सच के कलाकार है।

ख्वाब बन गयी है अब जिंदगी, चुपचाप चल रही है जिंदगी। ठोकरो ने चलना सिखाया बहुत खास है अब ये जिंदगी।

तुम्हारे बिन हमें कहाँ चैन आया है, तेरे आने से महफ़िल मे नूर आया है ,


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