माना सितम ढाना तेरी आदत में शुमार था.. तेरी इसी अदा का बेपनाह बस हमे खुमार था....!! भले तेरी राहों में अंजान से मुसाफ़िर थे हम.. तुझसे इश्क फिर भी ए जिंदगी हमे बेशुमार था..!! :-✍️Arya Vijay Saxena ......................................
माना मंजिलों की मद में हूँ.. मुक्कमल फ़िर भी अपनी हद में हूँ..!! ना समझ तू मुझे अंबर सा.. मैं आज भी ज़मीं की ज़द में हूँ..!! :-✍️Arya Vijay Saxena ......................................
अक्सर तन्हाई में, दिल के सभी ग़म लिखता हूँ.. कभी हँसी, कभी आँखे ये अपनी नम लिखता हूँ..!! फुरसत नहीं मुझे आजकल ज़रा भी फुरसतों से.. अल्फाज़ सभी मन के, इसलिए कम लिखता हूँ..!! :-✍️Arya Vijay Saxena ➖➖➖➖➖➖➖➖