मैं उसकी मंज़िल नहीं, उसकी मंज़ि
मैं उसकी मंज़िल नहीं, उसकी मंज़िल तो कुछ और है।
उसकी यात्राएं खुद से शुरू होकर, खुद पर खत्म हो जाती है।
संबंध अनमोल हैं,
इसलिए हर संबंध को,
सिर्फ प्रेम से ही तोला।
मगर हर रिश्ता अपनी,
जरूरत तक ही बोला।
निकल गए सब,
अपना - अपना हिस्सा लेकर,
ज़िन्दगी से लड़ता रहा ,
मैं तन्हा - अकेला।
शुक्रिया उनका जिन्होंने, तूफ़ान में धकेला मुझे।
अब आ गया तन्हा,
लहरों से लड़ना मुझे।
उम्मीद खत्म,दर्द खत्म।
न कोई कशिश
न कोई आहट।
न समझना, न समझाना ,
बस सपना और चलना।
उम्मीद खत्म,दर्द खत्म।
न कोई कशिश
न कोई आहट।
न समझना, न समझाना ,
बस सपना और चलना।
चलता रहाराहों पर ,,गिरता रहा राहों पर,
पिछली गलती से सीख ,
आगे बढ़ता रहा राहों पर।
ज़िन्दगी की परीक्षा जीता वही,जिसने जाना ,
धूल है और हवा लगे उड़ जाना है ज़िन्दगी।
मानव से मानव का प्रेम, विश्वास से ही बन पाता है।
जो करे विश्वासघात ,
वह पापी कहलाता है।