Linnet Chahal
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फ़कीर सा बंदा हूंँ, शब्दों का धनी।

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वक्त संग इस ढलते दिन जैसे ढलते देखा है मैंनै कुछ रिश्तों को, गुम होते सूरज जैसे ही गुम होते देखा है कुछ लोगों को, इन झड़ते पत्तों सा ही टूट कर बिखरा हूंँ मैं भी, मगर बस चाँद सा कोई ना मिला इन नम अंधेरी रातों में उजाला करने को।

Your thoughts are like the weeds that bother, they too pop up out of somewhere every time unwantedly!

मुस्कान के पीछे गम छुपा लेता हूँ सब सलामत बता देता। हूँ अकसर कमज़ोरों का मज़ाक बनाती है ये दुनिया , इसलिए हारकर भी मजबूत हूँ दिखा देता हूँ, और बस इस मुस्कान के पीछे गम छुपा लेता हूँ।


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