Neetu Maurya
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दुनियां में रचे युद्ब सारे हुए न होते कभी जो समझी होती सभ्यता ने चुम्बन की भाषा ।।

मैं, मैं नहीं तुम हो जाऊँ दिल से होकर मन तेरे की हो जाऊँ , आँगन तेरे की मैं तुलसी हो जाऊँ , रंग में तेरे रंग के मैं पूरी हो जाऊं ।।

कुछ ऐसी है इन लबों की गुज़ारिश ... की आज तुम मुझमे उतरो ऐसे जैसे , उतरती है आसमान से बारिश...।। की जकड़ लो मुझे यूँ बाहों में अपने जैसे , चाँद ने जकड़ी है चांदनी।।


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