जाने क्यूँ मैं अहिल्या से, दूर तक जुड़ी हूँ,
भीतर कहीं लगता है, मैं भी पत्थर से बनी हूँ.
क्यों मेरी सच्ची आवाज़ दूसरों तक नहीं पहुँचती?
मैं मुर्दों के बीच हूँ या मैं कब्र में सोई हुई हूँ?
तुम, मैं और हमारा सम्वाद, विशेष है
धरती, सूर्य, आकाश- शाश्वत, निर्विशेष है