मोहब्बत तो आज भी मुफ़्त में मिलती है ;
पर इश्क़ की तो कीमत चुकानी ही पड़ती है ।
जब शब्द हो जाते हैं निरुत्तर ;
तब मौन से मिलता है उत्तर !
मैंने भी ख़्वाबों के कई दरख़्त महकाएं है ;
ये सोचकर कि वो अच्छी खुशबू का तलबगार है !
जिस से दूर रह कर भी तुम अकेले न रहो ;
याद रखना एक उसी के साथ तुम रहने योग्य हो !
इश्क़ और मोहब्बत के मिलन का
एक मात्र गवाह हूँ मैं ;
हाँ उन दोनों की तरूणाई का
प्रतीक लाल गुलाब हूँ मैं !
तुम वो रूहानी कविता हो ;
जो मेरे भावों से गढ़ी गई हो !
वो अपनी दुकान मंदिर के खुदा के नाम से चलाए जा रहे हैं ;
और एक हम है जो अपने अंदर के खुदा को मारे जा रहे हैं !
मैं तो था लिपटा हुआ
कोरे कागजों की स्याही में ;
एक वो थी सिमटी हुई
मेरी कविताओं के छंदों में
सुनो ले चलो अपनी इन पलकों
कि सरहद के उस पार तुम मुझे ;
इस गहरी झील में तुम मेरा हाथ
पकड़कर इसे पार कराओ मुझे !