हम नाव कहा चलाए गढ्ढो में खेलने से मना करते मोबाइल ने छिन लिया बचपन कागज की नाव बनाना भूले कोई तो लौटा दो बचपन ये उम्मीद बस भर बाकी बारिश आए संजय वर्मा'दृष्टि' मनावर(धार)
भोर का तारा छुप गया उषा के आँचल पंछी कलरव , माँ की मीठी पुकार सच अब तो सुबह हो गई अनकहे रिश्तें करने लगे सूरज दर्शन संजय वर्मा 'दॄष्टि
मेरी बगिया वाला फूल ही सबसे सुन्दर है उसे रोपे जाने का प्रेम दुलार मेरे अन्दर है तितलिया करेगी स्वागत भोरें गुनगुनाएंगे मीठे गीत लगा लेगी वो उसके बालों में फूल और कहूँगा - मेरी बगिया वाला फूल ही सबसे सुन्दर है
इशारों की रंगत खो क्यूँ गई चूड़ियों की खनक और खांसी के इशारे को शायद मोबाईल खा गया घूँघट की ओट से निहारना ठंडी हवाओं से उड़ न जाए कपडा दाँतों में दबाना काजल का आँखियों में लगाना क्यूँ छूटता जा रहा व्यर्थ की भागदौड़ में