ये अमावश की रात में उजाला कैसा
चांद ने फिर रास्ता भटका है शायद
इधर तो तूफां आया नहीं
फिर आशियाना उजड़ा कैसे
ज़ख्म जो दिखा नहीं
शायद भेद गहरा होगा
~Rajeshwar
इधर तो तूफां आया नहीं
फिर आशियाना उजड़ा कैसे
ज़ख्म जो दिखा नहीं
शायद भेद गहरा होगा
~Rajeshwar
इधर तो तूफां आया नहीं
फिर आशियाना उजड़ा कैसे
ज़ख्म जो दिखा नहीं
शायद भेद गहरा होगा
~Rajeshwar
इधर तो तूफां आया नहीं
फिर आशियाना उजड़ा कैसे
ज़ख्म जो दिखा नहीं
शायद भेद गहरा होगा
~Rajeshwar
इधर तो तूफां आया नहीं
फिर आशियाना उजड़ा कैसे
ज़ख्म जो दिखा नहीं
शायद भेद गहरा होगा
~Rajeshwar
इधर तो तूफां आया नहीं
फिर आशियाना उजड़ा कैसे
ज़ख्म जो दिखा नहीं
शायद भेद गहरा होगा
~Rajeshwar
इधर तो तूफां आया नहीं
फिर आशियाना उजड़ा कैसे
ज़ख्म जो दिखा नहीं
शायद भेद गहरा होगा
~Rajeshwar
इधर तो तूफां आया नहीं
फिर आशियाना उजड़ा कैसे
ज़ख्म जो दिखा नहीं
शायद भेद गहरा होगा
~Rajeshwar