Divya Rathore
Literary Colonel
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सन्यासी है तो सन्यासी बनकर चल वैरागी है तो वैरागी बनकर चल ए मुसाफिर उम्मीद लगाना छोड़ दे ..तू निर्मोही बनकर चल मत लगाया कर उमीदे इतनी जल्दी अक्सर काँच सी टूट बिखर जाती है बटोरेगा तो हाथो में घाव देंगी वरना दिल में एक टीस सी छोड़ जाती है ....

झड़ने लगे है कुछ लोग मन से ...लगता है मौसम पतझड़ का है ...

बड़ा अकड़ कर बोला हुनर ...साहब मै किसी का मोहताज़ नहीं ...दूर बैठा अवसर धीमे से मुस्कुरा दिया ....


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