Jiwan Sameer
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आंखों में तिरे इश्क का समंदर है और मिरा डूबना ही मिरा मुकद्दर है

खुला गगन का भेद मन काला तन श्वेत मन में ताप तन में स्वेद मानवता का यह विच्छेद

भावनाओं को तुम आवाज दे दो खामोशी अब मुझे जीने नहीं देती

तहरीर लिख दी तुमने मेरी तस्वीर पर एक लकीर खींच दी मेरी तकदीर पर

खामोशी से पढ़ लेता हूँ तिरी आंखों की आशनाई को

खुद को परखने मैं तेरे पास दिल को छोड़ आया हूं मैं खाली शीशा नहीं तपकर निखरकर तब आया हूं


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