जब से तुझे देखा दीदार करने लगा ख्वाबों में खोया रहा और तूझसे प्यार करने लगा जब हो जाता आपसे दूर आंखे नम हो जाती बस आपसे मिलने का इंतजार करने लगा।।
कलम की मार सही ना जाये। इसके बिन कही रही ना जाये।। कलम ही है मेरी जिंदिगी। इसके बिन नींद ना आए।। कलम की मार सही ना जाए ✍️सुशील कुमार पाल
तू मुझसे रूठती। मै मानता।। तू मुझसे दूर जाति। मै तेरे करीब आता।। तू खिड़की से बुलाती। मै दरवाजा से आता।। तू जब घबराती। मै धीरे से शाहलाता।। तू रूठती मै तुझे मनाता।। ✍️ सुशील कुमार पाल
दोस्ती के इबादत परवाने क्या मिटाएंगे जो मिटाने आयेंगे ओ मिट्टी में मिल जायेंगे दोस्ती रहे सलामत हमारी अरमान सभी जगाए रखेंगे
तू मुझसे रूठती। मै मानता।। तू मुझसे दूर जाति। मै तेरे करीब आता।। तू खिड़की से बुलाती। मै दरवाजा से आता।। तू जब घबराती। मै धीरे से शाहलाता।। तू रूठती मै तुझे मनाता।। ✍️ सुशील कुमार पाल
गांव की वादीयों जैसे खुबसुरत हो तुम। पक्षियों जैसी मिठी चहक हो तुम। तुम्हें कैसे भुला दु दोस्तो, फुलों जैसे महक हो तुम।।।