Vijay Paliwal
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कहना हमेशा सरल होता है लेकिन करना हमेशा ही मुश्किल।

रूह में मेरी उतर जाओ राहों से मेरी गुजर जाओ रहते है इंतजार में तेरे कभी तो इस गली भी आओ।

बसंत ऋतु आ रही है मन को मेरे भा रही है होगा कुछ नया गीत बस यही गा रही है।

करते है प्रेम कहते है जन कर रहे है आज प्रणय निवेदन।

फूलों सी हँसी में तेरी खो जाऊँ मेरी हसरत है मैं तेरा हो जाऊँ।

राहे मंजिल आसान कहाँ होती है हिम्मत गर है तो मुश्किल भी कहाँ होती है।

जीवन नाम है चलते रहने का साँझ नाम है ढलते रहने का।

कैंसर से हमें लड़ना है नहीं इससे डरना है।

रुह में मेरी समा जाओ, जरा और नजदीक आ जाओ, दूरियाँ कैसी ये, अब तो गले लगा जाओ। - विजय कुमार बोहरा


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