आशिक़ी बराबर
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हमको जो जीत ले सिकंदर वो तुम नहीं।
दिल में है कोई बेशक, अंदर वो तुम नहीं।
हम पर जो लूटाता है दिन-रात क्या कहें।
चाहत का लबालब, समंदर वो तुम नहीं।
आशिक़ी बराबर
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साथ चलते हुए तुम कहां खो गए।
जब हमारे थे क्यों और के हो गए।
मेरे ख्वाबों की दुनिया में तुम थे बसे,
नींद मेरी उड़ी ख़्वाब सब सो गए।