Randhir Kumar
Literary Captain
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चला हूँ सफर पे चलता रहूंगा, तू साथ दे या ना दे ऐ ज़िन्दगी, कुछ तो करता ही रहूंगा!!..

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Tum haal na puchho mujhse mera... 'Thik hun' har bar kahna... takleef deta hai!.

Tum haal na puchho mujhse mera... 'Thik hun' har bar kahna... takleef deta hai!.

अभी तो बचपन ही है, ये हाथ बड़ा कोमल है। इसे मजदूरी के आग में मत झोंको

इज़हारे मुहब्बत तो सब करते हैं, मगर अपने वादों से न मुकरे तो जाने।..

तू खिलता गुलाब है, तेरी खुशबू के अज़ीज़ हैं हम। मगर डर लगता है तेरे कांटे कही घायल ना कर दे।...

हमे राहों पे चलते रहने की आदत हो गयी है, क्या करें मंजिलों का जो भूख रगों में फैला है।..

भरोसे के वहम में इस कदर जीता हूँ,, धूप में अपने साये से भी डर जाता हूँ।..

सिगरेट तेरी यादों में धूं धूं कर इसे जलाता रहा,, अब देखो ना ये मुझे ही ख़ाक करने लगा है।।

आदतन तुम्हारा चुपके से देखना मुझे गवारा लगता है... आओ कभी मिलकर बातें करते हैं।..


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