लफ़्ज़ों से ज्यादा अल्फ़ाज़ों का सहारा लेती हु, मै खामोश रहे सब कहा करती हु.
जाम से जाम तकताये जा रहे है, जान से जाम तकताये जा रहे है, हमारे हे महबूब के महफ़िल मे हम गैर बताये जा रहे है.
दिल मे कुछ गुथा गुथा सा है, न जाने के कैसा अहसास है जो सुलजा होक भी उलझा सा है