लफ़्ज़ों की कलम है मेरी नज़्मों सी लिखावट है ज़रा ग़ौर कीजिए हमपर मेरी गज़लों में बग़ावत है
"फ़िराक़-ए-इश्क़" अफ़साना बन गया हूँ अस्क़ाम-इ-मोहब्बत का, इत्तिफ़ाक़न-ए-इश्क़ में मेरा ऐतबार नहीं होता.. मुझे पे अज़ल-ए-फ़ितूर बस तेरा चढ़ रहा है, पता है हमें ये ज़िन्दगी-ए-क़ायदा-ए-क़यामत है ;