रंग बदलती दुनिया का,
एक ऐसा भी मंजर देखा ।
शर्मीली आँखों में मैंने,
ईश्क का समंदर देखा ।।
डूबता रहा इन असीम गहराई में,
होश तब आया, जब प्यार में,
तनहाई का खंजर देखा ।।
---- नवीन कुमार
रोते-रोते मुझसे पूछा,
मेरे पैर के छालों ने ।
बस्ती कितनी दूर बसा ली, दिल में बसने वालों ने ।।
ईश्क की दरिया में उतर कर तो देखो।
प्यार की परछाई को पकड़ कर तो देखो ।
मोहब्बत के नाम पर कुर्बान होते तो सूना है,
कभी अपने प्यार के लिए जी कर तो देखो ।।
नवीन कुमार