हम इश्क़ मे डूबे और गुनाहगार हो गये
और उम्र के फासलों से बेज़ार हो गये
एक उम्र निकल गई,उनके इश्क़ मे
और वो कह गये,तुम क्या जानो इश्क़ क्या है
अपर्णा
क्या इश्क़ के भी काईदा कानून होतें हैं,
मैं तुझ मे डूबी सब की गुनाहगार हो गई ।।
अपर्णा
ये इश्क़ भी मेरा ,मोहब्बत भी है मेरी
मै तुझको क्या कहूँ,अदावत है ये मेरी।।
इश्क़ के सफर को कुछ ऐसे तुम निभाना
कभी मैं आगे जाऊँ,कभी तुम पीछे आना।
अपर्णा
मोहब्बत की कलम थी,और इश्क़ की सियाही।
हम ही लिखते रहे,हम ही पढ़ते रहे।।
अपर्णा
मैं नृत्य हूँ,तू भाव है,,मैं गीत हूँ,तू राग है।
मैं तुझमे आधी हूँ बसी,तू मेरा आधा भाग है।।
अपर्णा।।
मैं भी मीरा बन तराने तेरे गाऊँ,मै भी राधा जैसे तुझपे वारी जाऊँ
मुझको भी बान्सूरी सा होंठों पे सजा लो,आओ कान्हा तुम मुझे अपना बना लो।।।।
अपर्णा
कुछ किस्से थे,कुछ नादानी,वो उम्र बड़ी हसीन थी,
जहाँ इश्क़ की सारी बातें भी कुछ मीठी कुछ नमकीन थी।।